Wednesday, October 26, 2016

“Right to Representation

आज सुबह उठा तो फेसबुक खोली तो पाया की बहुत से लोग लिख रहे है “हम आरक्षण विरोधी है” कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य ऐसा लिखे तो समझ आता है लेकिन जब एससी, एसटी, ओबीसी और आदिवासी लोग यह बात कहे तो बहुत हैरानी होती है. ब्राह्मण जो बोलता है उसी को सच मान के बैठ जाते है और उस पर लंबी लंबी बहस करने लगते है. असल में ब्राहण अज्ञानी नहीं है वो सब जानता है. लेकिन आप लोगों का ज्ञान अधूरा है. इसीलिए आप लोग ऐसी मूर्खतापूर्ण हरकते करते है.
असल में आप लोगों को कही भी आरक्षण नहीं दिया गया है यहाँ कोई है जो मुझे बता सके कि संविधान में कहा आप लोगों को “Right to Reservation” मतलब “आरक्षण का अधिकार” दिया गया है?
संविधान में कही भी आरक्षण की बात नहीं की गई है. असल में आप सभी लोगों को “Right to Representation” मतलब “प्रतिनिधत्व का अधिकार” दिया गया है. सही तरीके से समझाने के लिए मुझे यहाँ एक उदाहरण देना पड़ेगा. इंडिया में इस समय दो वर्ग के लोग है. पहले बहुसंख्यक; जो गरीब, सदियों से प्रताड़ित, उत्पीडित और शोषित लोग है. दूसरे अल्प संख्यक; जो साधन सम्पन और सदियों से बहुसंख्यकों का शोषण करते आ रहे है. बहुसंख्यकों में एससी, एसटी, ओबीसी और आदिवासी या धर्मान्तरित लोग आते है और अल्प संख्यकों में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य आते है. आज बहुसंख्यकों के पास ऐसा कोई साधन नहीं है जिससे वो सत्ता पर काबिज हो सके. जबकि अल्पसंख्यक लोगों के पास हर तरह के साधन है. अब मान लो संसद में 100 लोग चुन कर जाते है. अगर प्रतिनिधत्व का अधिकार नहीं होगा तो जो सम्पन और चालक वर्ग है जिसकी मानसिकता ही गरीब बहुसंख्यकों का शोषण करना है वो कोई भी तिकडम लगा कर अपने ही 100 लोग संसद में भेजेगा और अपनी मनमानी से शासन करते हुए बहुसंख्यकों का शोषण करेगा. क्योकि वो अनपढ़, गरीब, साधनहीन और सदियों से प्रताड़ित लोग है.
इसी बात को समझते हुए भीम राव अम्बेडकर ने संविधान में एक व्यवस्था कर दी. जिसके अंतर्गत यह शर्त रखी गई कि हर क्षेत्र में बहुसंख्यकों को एक निश्चित प्रतिनिधित्व दिया जाए. जिसका प्रतिशत आज 27 है. अब हम उदाहरण पर आते है; अगर 100 लोग संसंद में चुन कर जाने हो तो व्यवस्था कहती है कि उन 100 लोगों में 27 प्रतिशत लोग बहुसंख्यक होने चाहिए. ताकि 77 प्रतिशत लोग अपनी मनमानी ना कर सके.
यह बात ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को ना बाबा साहब के समय रास आई थी और ना आज रास आती है क्योकि उनकी मानसिकता में बहुसंख्यकों के लिए सिर्फ और सिर्फ नफ़रत भरी पड़ी है. ये लोग कभी बहुसंख्यकों को ऊपर उठते या विकास करते देख ही नहीं सकते. यही मुख्य कारण है कि आज ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य “Right to Representation” को खत्म करना चाहता है. ताकि वो लोग मनमर्जी से बहुसंख्यकों का शोषण कर सके और उन पर राज कर सके. यही वो कारण है जिसके चलते ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य प्रतिनिधत्व के अधिकार को आरक्षण बता कर उसके विरोध में भारी जन समर्थन बनाने के लिए प्रयासरत है और प्रतिनिधत्व के अधिकार को आरक्षण बोल कर बहुसंख्यकों बरगला रहा है.
बहुसंख्यकों अभी भी समय है सावधान हो जाओ. ब्राह्मण प्रतिनिधत्व को आरक्षण कह कर आपका वो अधिकार भी छीनना चाहता है जो आपका मौलिक अधिकार है. मैं आशा करता हूँ कि आज के बाद कोई भी बहुसंख्यक किसी भी हाल में प्रतिनिधत्व के अधिकार का विरोध नहीं करेगा.
आप लोगों को यह अधिकार मुफ्त में नहीं मिला है. इस अधिकार के लिए आपके पूर्वजों ने अपनी तीन पीढ़ियों का बलिदान दिया है और बर्षों का संघर्ष किया है. अपने महापुरुषों का सम्मान करना सीखो. उनके दिए अधिकारों को सही से समझो फिर उस पर बात करो. ब्राह्मण आज मीडिया पर भी आरक्षण-आरक्षण चिल्ला कर प्रतिनिधत्व के अधिकार का विरोध कर रहा है. हमारे पास कोई मीडिया नहीं है. लेकिन आप सभी लोग हमारे मीडिया हो. यह सन्देश बहुसंख्यकों के घर घर पहुंचाए और बहुसंख्यकों में जागृति उत्पन करे.
अब मैं आप लोगों से पूछना चाहता हूँ कि इस में आरक्षण की बात कहा से आई? असल में आरक्षण तो है ही नहीं. आप लोगों को तो प्रतिनिधत्व का अधिकार दिया गया है. मैं आशा करता हूँ कि आज के बाद कोई भी एससी, एसटी, ओबीसी और आदिवासी समाज के लोग प्रतिनिधत्व के अधिकार का विरोध नहीं करेंगे

गुजरात - चमारों v/s ब्राह्मणों

पिछले दिनों जब गुजरात में चमारों को ब्राह्मणों ने मारा तब से देख रहा हूँ हर तरफ जैसे रैलियों प्रदर्शनों की एक बाढ़ जैसी आ गई है. जिस किसी को देखो ब्राह्मण के अत्याचारों के खिलाफ उठ खड़ा हुआ नज़र आता है. हर टीवी, समाचार पत्र दलित-दलित चिल्लाता नज़र आ रह है. अक्सर ऐसे ही बदलाव एक क्रांति के कारण बनते है लेकिन भारत को लेकर ऐसा कहना गलत होगा. क्योकि यहाँ के आदमी सही और गलत में भेद नहीं कर पाते. उनका सोचने का स्तर आज भी ब्राह्मण लोग ही तय करते है. कहीं भी ऐसी कोई घटना घटती है ब्राह्मण टीवी पर एक कांफ्रेंस का आयोजन करते है और उस में हर घटना को दलित और उच्च वर्ग में होने वाली घटना करार दे देते है. जिस का असर साफ़ साफ़ देखने को मिल जाता है. जो शोषित वर्ग है वह दलित बन जाता है और दूसरा शोषण करने वाला वर्ग उच्च वर्ग बन जाता है. यही सब गुजरात की घटना के साथ भी हुआ. यहाँ तक तथाकथित दलित नेता भी ब्राह्मणों की इस राजनीती को नहीं समझ पाते. आखिर ऐसा होता क्यों है तो मुझे एक ही कारण नज़र आता है, हजारों सालों से मानसिक गुलामी की मानसिकता असल में इन सभी के लिए उतरदायी है.
जब भी शोषित और उच्च वर्ग के बीच जब ऐसी घटनाएँ घटती है तो वह असल में दलित और ब्राह्मण या शोषित और उच्च वर्ग का मुद्दा होता ही नहीं है. वह तो मूलनिवासी और विदेशी का मुद्दा होता है. फिर चाहे वो भारत के किसी भी राज्य में क्यों न घटित हुआ हो. ब्राह्मण बहुत चालक है और वह जानता है कि किस घटना को कैसा रूप देना है.जब भी दलित और ब्राह्मण की बात होगी ब्राह्मण उस पर राजनीती करेगा. उसका सही से जबाब देगा और उन घटनाओं को दबा देगा. क्योकि ब्राह्मण को अब अभ्यास हो गया है कि कैसे घटना को अंजाम देना है और उसके बाद कैसे खत्म करना है. अगर गुजरात की घटना को मूलनिवासी और विदेशी के बीच घटित घटना कहा जाता मूलनिवासी के अधिकारों और न्याय के लिए संघर्ष किया जाता तो ब्राह्मण चुप हो जाता उसके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं होता. यहाँ तक टीवी चैनल पर भी कोई भी बहस का आयोजन नहीं होता. क्योकि ब्राह्मण जानता है मूलनिवासी और विदेशी वाली बात वह सार्वजानिक नहीं कर सकता जबकि सुप्रीम कोर्ट भी इस बात को मानता है कि ब्राह्मण विदेशी है. ब्राह्मण की पूरी दुनिया में किरकिरी होती और पूरी दुनिया जान जाती कि ब्राह्मण जो असल में विदेशी आर्य है आज भी भारत के मूलनिवासियों पर धर्म और जाति के नाम पर अत्याचार कर रहे है.
इन सभी घटनाओं से पता चल जाता है कि देश में बनाये गए 80 हज़ार से ज्यादा मूलनिवासी संगठन जो गर्व से अपने आपको अम्बेडकरवादी कहते है सभी गलत दिशा में कार्य कर रहे है. आज एक भी ऐसा संगठन नहीं है जो सही दिशा में कार्य कर रहा हो. सभी संगठनों के नेता किसी न किसी तरह ब्राह्मण को ही बढावा दे रहे है या ब्राह्मण का सहयोग कर रहे है. क्योकि जो ब्राह्मण चाहता है अगर हम वही करेंगे तो तो वह एक तरह से ब्राह्मण को बढावा देना ही तो होता है. बाबा साहब ने कहा था जब भी ब्राह्मण जोर से चिलाता है समझ जाओ कि खतरा है, जब ब्राह्मण चुप होता है तब हमे जोर से बोलना चाहिए होता है. लेकिन यहाँ तो तथाकथित दलित नेताओं ने किसी को कुछ भी बोलने के काबिल ही नहीं छोड़ा. अगर ये तथाकथित दलित नेता राजनीती करना छोड़ कर सही दिशा में कार्य करते तो आज पूरी दुनिया को पता चल जाता कि भारत के मूलनिवासी आज भी गुलाम है और विदेशियों के अत्याचारों के शिकार बन रहे है. युनओ जैसे विश्व स्तरीय संस्थाओं में भारत के मूलनिवासियों की आवाज़ गूंज रही होती. ब्राह्मण पर हर तरफ से दबाब बना होता.
दोस्तों अपनी मानसिकता बदल डालो अपना सोचने का तरीका बदल डालो. जो सही हो उस पर ध्यान दो. जो ब्राह्मण कहता है उसको मत मानो. जब तक आप वही मानते रहोगे तब तक आप लोगों का भला किसी भी हाल में नहीं हो सकाता और वह नेता जो कहते है कि आपको पता नहीं है कि काम कैसे किया जाता है उन नेताओं को जूते मारो. सही और असल में फर्क करना सीखो तभी मूलनिवासी लोग ब्राह्मण की गुलामी से आज़ाद हो पाएंगे. गुजरात के साथ साथ आज देश के ज्यादातर हिस्सों में मूलनिवासियों के ऊपर विदेशी ब्राह्मणों के अत्याचार एक दम बढ़ गए है. देश के कोने कोने से हर रोज हजारों समाचार प्राप्त हो रहे है कि कही बलात्कार हो रहे है कही मारपीट हो रही है कही महिलाओं को प्रताड़ित किया जा रह है. यह सब असल में विदेशियों द्वारा मूलनिवासियों को दबाने के लिए किये जाने वाले प्रयास है. दयाशंकर का ब्यान भी असल में मूलनिवासियों को मुख्य मुद्दे से भटकना था. लेकिन तथाकथित दलित नेता इन बातों को समझ नहीं रहे है और अपने मनमाने ढंग से विरोध प्रदर्शन कर रहे है जोकि मूलनिवासियों की आने वाली पीढ़ी को उस गर्त में लेके जायेगा जहाँ से आने वाले हजारों बर्षों तक निकालना मुश्किल हो जायेगा.
अभी 2017 में बहुत से राज्यों में चुनाव होने जा रहे है यह सब चुनावों के पृष्ठ भूमि बनाने के लिए किये जा रहे प्रयास है. हर कोई अपने अपने लिए मुख्य मुद्दे से हट कर पृष्ठ भूमि बनाने के लिए कार्य कर रहा है फिर चाहे वो ब्राह्मण हो या तथाकथित दलित नेता. हमे इस सोच को बदलना होगा अपनी मानसिकता में परिवर्तन करना होगा सही तरीके से सही लड़ाई लड़ानी होगी तभी मूलनिवासी सफल हो जायेंगे. आज सुबह समाचार मिला कि गुजरात के 1000 मूलनिवासी बौद्ध धर्म को अपनाने जा रहे है ताकि वो लोग भविष्य में फिर से ऐसी घटनाओं के शिकार न बने. यही सही भी है बाबा साहब अपने अंतिम बर्षों में ब्राह्मणवाद का अंतिम उपाय धर्म का त्याग करना बता गए लेकिन कितने लोग उनकी बात को समझ पाए. यहं एक प्रश्न उन दलित नेताओं और सगठनों पर भी उठता है कि वो नेता आखिर सब जानते हुए धर्म परिवर्तन क्यों नहीं करते? असल में वो तथकथित नेता अपनी राजनीती चमकाने के चक्कर में होते है. उनको कोई फर्क नहीं पडता कि हमारा समाज या हमारे लोग कहाँ जा रह एही और उन पर क्या बीत रही होती है. उनको तो सिर्फ राजनीती करने से मतलब होता है.
दोस्तों बाबा साहब के बताये रास्ते पर चलो. हिंदू धर्म का त्याग करो और एक हो जाओ. जिस दिन हम हिंदू धर्म से बाहर निकल जायेंगे ब्राह्मणों के पास हमारा शोषण करने और हम पर अत्याचार करने के कोई बहाना नहीं रह जायेगा और मूलनिवासी हमेशा के लिए आज़ाद हो जायेगा.